ऐ ख़ुदा तेरे कुछ लोगों से मैं इतना प्यार कर बैठा,
छू गए दिल को ऐसे कि बस आँखों से बयान कर बैठा ।
अब न शिकायत, न कोई रज़ा रही,
मैं तो ज़िन्दगी को बस खूबसूरत समझ बैठा।
खुशनुमा राह अब कौनसी नहीं थी?
मैं तो हर नज़ारे से ऐतबार कर बैठा ।
तेरे रग रग में होने का जब एहसास हुआ,
हर मज़हब की कोशिश को बेकार कर बैठा।
भर ली बातें मोहब्बत से यूँ,
कि नफ़रत को हरदम इनकार कर बैठा ।
रहाई ढूंढी कोने कोने में,
और खुशियों का बाज़ार कर बैठा ।