Friday, 23 May 2014

Today

"ये दिन"

इस लम्हे में छुपा कैसा ये राज़ है?
सब कुछ इस मेहफिल में साज़ है,
दिल कहे यहीं रह जाऊं,
कल माँगता  नहीं वो,
दूर चले जाये सब अपने,
ऐसे पल चाहता नहीं वो। 

गुज़रते वक़्त को थाम दूं,
क्या इतना हक़ नहीं मेरा?
दर लगता है अँधेरे से,
क्या पता, ले जाए सब कुछ कोई नया सवेरा?

ये जो हाथ पकड़े हुए है, जकड़े हुए है,
उन्हें किसी के हवाले नहीं कर सकता मैं,
कल क्या पता क़र्ज़ माँग ले सब कुछ का,
सच तो ये है, नहीं भर सकता मैं। 

मुश्किल है ये, मालूम है मुझे,
पर यही, यही ज़िन्दगी है मेरी,
वक़्त न सुनता किसी की,
यही गिला है मेरी। 

"मैं छोड़ आया सब",
ये कह, रोना नहीं चाहता,
बस, और कुछ नहीं,
सिर्फ इस दिन को खोना नहीं चाहता। 

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