Monday, 5 October 2015

To lose yourself, is to find yourself.

हम ख़ुद ही ख़ुद में कैद है,
ये डर मानो उस कारागार की ज़ंजीरें। 
अंगारों-शोलों जैसे जलना है हमें,
पिघला कर इन ज़ंजीरों को,
हासिल करनी है उड़ान धीरे-धीरे। 

परिंदे इस फलक के,
देखो सारा जहाँ हमारा है,
दूर कोई मंज़िल की तलाश में,
हर मुसाफ़िर आवारा है। 

किस हवा के झोंके का इंतज़ार है,
हिम्मत कर बस एक कदम बढ़ाना है,
फिर थमती नहीं धड़कनें,
जब पँखों में हौंसले सवार है। 

दो पल फ़िज़ाओं में खो कर तो देखो,
अगले ही पल ख़ुद से मिल जाओगे तुम। 

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