वो वतन से मुहौब्बत कैसी?
कोई तुम्हे उनकी शहीदी सुनाए,
और तुम्हारी रूह न काँपें,
वो वतन से मुहौब्बत कैसी?
तुम हज़ारों संग जन-गन-मन गाओ,
और तुम्हारा जिस्म न थर्राए,
वो वतन से मुहौब्बत कैसी?
कोई सरहद पर बे-मौत अपनी जान गँवा दे,
और तुम्हे दर्द न हो,
तो कोई मैदानों में फतह पा ले,
और तुम्हे फ़क्र न हो,
वो वतन से मुहौब्बत कैसी?
तिरंगा फलक तक लहराए,
इंसानियत ही मज़हब बन जाए ,
तरक्क़ी बेमिसाल हो जाए,
और अपनी छवि पर आँच न आए।
इस वतन से,
इस मिट्टी से,
तुम्हे और मुझे,
मुहौब्बत हो ऐसी ।
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