Monday, 2 May 2016

Travel and friends.

तो चलो आज फिर निकलते है,
घर से बाहर थोड़ी दूर,
खाली बस्तों के संग,
यारों के कंधों  के सहारे,
और चुरा लेते है ज़िंदगी से,
कुछ खूबसूरत पल,
जो कभी भूले नहीं जा सकते । 

चलो गाते है अपने तराने,
आने वाले कल की परवाह नहीं करते,
और जी लेते हैं ,
एक दूसरे की खुशियों में,
बाँट लेते है बोझ सारे,
जिससे शायद सब बेहतर लगे । 

बेख़बर रहते हैं दिन-रात से,
इस आज़ादी में फ़िक्र करते हैं तो सिर्फ ख़ुद की,
वक़्त को रोक देते हैं ,
कि शायद ये समां वापस न आये,
और ये दोस्ती जो निभाई है,
इनका हमेशा से रिश्ता जोड़ लेते हैं । 

और लौट आते है घर,
थके-हारे,
उन्हीं कंधों के सहारे,
फर्क इतना की बस,
वो खाली बस्ते मीठी यादों से भरे हों । 

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