"खुद को सँवारा"
खुराफातें की मैंने खुद से,
आँख दोबारा मिलाई,
भुला सब कुछ जैसे,
आहटें दिल की जलाई।
आशाओं का हटा दिया, मन में जो था बसेरा,
अब बचा था सिर्फ मैं और पास पड़ा था समय का ढेरा।
पहले अक्सर जीने कई चाहत में, खुद को घायल किया मैंने,
होश ज़िन्दगी का पाने के लिए, खुद को कायल किया मैंने।
हर बार से कुछ अलग था ये एहसास,
जितना गहरा गया, उतना खुद को निहारा मैंने,
धुंधला कर हालातों को,
खुद को सँवारा मैंने।
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